रफ़ी खान/उत्तराखंड।
उत्तराखंड की ठंडी,ठंडी शांत वादियों को देव भूमि यूं ही देव भूमी नहीं कहां जाता है यहां की संस्कृति एवं परंपरा भी एहसास कराती है कि यहां के हर एक पत्ते पत्ते और पत्थर में देवता वास करते हैं और भगवान् मौजूद हैं। देवभूमि के उत्तरकाशी के द्वारिका यानी गाजणा एवं रमोली क्षेत्र के सिरी गांव में भगवान जगन्नाथ की अनोखे रूप में पूजा की जाती है पूजा की तिथि निर्धारित होने पर पूरे क्षेत्र के पशुपालक दो दिनों का दूध दही मक्खन घी इकठ्ठा करते हैं और 4 किलोमीटर खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद होड़ नामक जगह में दूध दही घी मक्खन का भंण्डारा करते हैं और भगवान जगन्नाथ की पूजा अर्चना करते हैं।
कहा जाता है कि इन दो दिनों में गांव के लोग एक बूंद दूध भी अपने घरों में नहीं रखते हैं सबसे पहले भगवान का दूध से स्नान करवाया जाता है उसके बाद आटे का हलवा एवं दूध से खीर बनाकर इसका भंण्डारा किया जाता है।
इसके पीछे की मान्यता बताते हुए ग्रामीणों का कहना हैं कि द्वापर युग में भगवान कृष्ण इस क्षेत्र में सेम नागराजा के रूप में विराजमान हुए हैं तब से वह इस क्षेत्र के आराध्य देव हैं और उन्हीं का धन्यवाद करने के लिए वह सभी निर्धारित तिथि को पूरा गांव यहां आता है और भंण्डारा कर पूजा अर्चना करता है।
कहा यह भी जाता है कि यदि नियत तिथि के दिन इस परंपरा को निभाने में देर हो जाती है तो यहां पर भगवान बाघ के रूप में प्रकट होकर गांव के पशुओं को नुक़सान पहुंचाते हैं।