ये शहर अब डराता है!
रामनगर। कभी सुकून और हरियाली का पर्याय रहा रामनगर, अब चीख़ों और सायरनों की आवाज़ से गूंजने लगा है। जी हां, अब कॉर्बेट की शांति के पीछे एक ऐसा खौफ पल रहा है जो इस शहर की पहचान को ही निगलता जा रहा है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि अब लोग यह पूछने लगे हैं – “रामनगर को आखिर किसकी नज़र लग गई?”
रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
बीते कुछ समय में शहर की सड़कों पर जो हुआ, उसने हर किसी को हिला कर रख दिया। दिन-दहाड़े गोलियां चलना, सड़ी-गली लाशें मिलना, और हर हफ्ते एक नई सनसनी—ये सब अब ‘नॉर्मल’ होता जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि कई छोटे-बड़े गैंग अब खुलेआम सक्रिय हैं जो चोरी, नशा, वसूली और हत्या तक में लिप्त हैं। चिंता की बात ये कि इनमें बड़ी संख्या में नाबालिग लड़के शामिल हैं जिन्हें ‘कानूनी ढाल’ बना कर इस्तेमाल किया जा रहा है।
समाजसेवी महेंद्र प्रताप कहते हैं कि, “पहले कोई बड़ी घटना होती थी तो नेता धरने पर बैठते थे, अब तो किसी को फर्क ही नहीं पड़ता!”
जावेद खान, ज़िला महामंत्री, का कहना है कि, “सबसे पहले मां-बाप को जागना होगा, बच्चों को फेसबुक से निकाल कर किताबों की तरफ लाना होगा।”
ज़ीशान कुरैशी ने नाबालिगों की भागीदारी पर चिंता जताई और कहा, “ये बच्चों की नहीं, अभिभावकों की असफलता है।”
पूर्व चेयरमैन प्रत्याशी मोहम्मद आदिल खान मानते हैं कि रामनगर में अपराध बढ़ने के पीछे बेरोज़गारी, शिक्षा की कमी और नशे की पकड़ अहम है।
प्रभात ध्यानी और अमिता लोहनी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं का भी यही कहना है कि जब तक समाज और प्रशासन साथ नहीं आएंगे, तब तक रामनगर यूं ही अपराध की गिरफ्त में घुटता रहेगा।
रामनगर की फिजाओं में उठता ये धुआं अब सिर्फ डर नहीं फैला रहा, ये उस शहर की पहचान को जला रहा है जो कभी उत्तराखंड की शान हुआ करता था। क्या हम इसे यूं ही अपराध के अंधेरे में डूबता देखेंगे या एकजुट होकर बदलाव की मशाल जलाएंगे?