नाम बताओ जब थाने में ही पहचान का प्रमाण माँगा जाने लगे…”
रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
नैनीताल। में इन दिनों हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि अब सिर्फ आम लोग नहीं, वर्दीधारी भी सवालों के घेरे में हैं और वजह सिर्फ एक उनका नाम, उनकी पहचान। एक वायरल वीडियो ने सबको हिला कर रख दिया है। वीडियो में साफ़ दिख रहा है कि एक थाने के अंदर, ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मी को कुछ लोग घेर लेते हैं। उसकी जैकेट खींची जाती है, उससे ज़बरदस्ती उसका नाम पूछा जाता है, और जब नाम “उनकी सोच” के मुताबिक नहीं होता तो शुरू हो जाता है गाली-गलौज, चीख-पुकार और दबाव बनाने का खेल पुलिसकर्मी कहता रहा, “मैं वकील हूं, कानून जानता हूं…” लेकिन सामने खड़े लोग कानून नहीं, मज़हब देख रहे थे। यह मामला किस थाने का है, ये अभी स्पष्ट नहीं, लेकिन हालात की गंभीरता इससे समझ लीजिए कि अब थाने में तैनात पुलिसवाले भी अपनी पहचान साबित करने को मजबूर हो रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से नैनीताल में जिस तरह एक दर्दनाक घटना के बाद पूरे समाज को एक रंग से देखा जाने लगा है दुकानों पर हमले, मस्जिदों के बाहर नारेबाज़ी और अब थाने के अंदर ऐसी तस्वीरें ये सिर्फ कानून व्यवस्था नहीं, इंसानियत पर भी हमला है। सोचिए अगर वर्दी पहनने के बाद भी कोई सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी क्या उम्मीद रखे? क्या अब कानून के रक्षक भी ‘पहचान’ देखकर टारगेट किए जाएंगे? क्या अब थाने में वर्दी नहीं, धर्म पूछा जाएगा? क्या अब न्याय की आवाज़ भी भीड़ की मानसिकता से दबा दी जाएगी? ये वीडियो कोई मज़ाक नहीं ये लोकतंत्र के मुंह पर तमाचा है। अगर अब भी अफसर नहीं जागे, तो कल कोई भी महफूज़ नहीं बचेगा न वर्दी वाला, न आम नागरिक। अब चुप रहना गुनाह है प्रशासन को, सिस्टम को और समाज को जवाब देना ही होगा। ये वीडियो फिलहाल सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, लेकिन अभी तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यह वीडियो किस थाने या किस जिले का है। कुछ लोग इसे नैनीताल के मल्लीताल थाने से जोड़ रहे हैं, लेकिन इस बारे में अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। कोई स्पष्ट बयान, कोई FIR, कोई प्रेस नोट कुछ नहीं। फिलहाल सिर्फ वीडियो है, और उसमें दिखता है कि कैसे वर्दी में एक पुलिसकर्मी अपनी पहचान का प्रमाण देता फिर रहा है सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका नाम “किसी के मुताबिक” सही नहीं। अगर थाने में तैनात पुलिस वाला भी सुरक्षित नहीं, तो आम आदमी कैसे महफूज़ रहेगा? क्या नाम और मज़हब अब काबिलियत से ज़्यादा बड़ा हो गया है? क्या भीड़ अब थाने की वर्दी के नीचे धर्म तलाशेगी? ये सब कब तक चलता रहेगा और सिस्टम कब जागेगा? यह न्यूज़ किसी एक नाम की नहीं, बल्कि उस सोच की है जो अब पुलिस थानों तक घुस चुकी है। अब वक्त है, कि सरकार, प्रशासन और पुलिस खुद सामने आए और इस वीडियो की सच्चाई सार्वजनिक करे। क्योंकि अगर वर्दी वाला भी सवालों के घेरे में है। तो वाकई मामला बेहद गंभीर है।
अब प्रशासन की ज़िम्मेदारी बनती है कि वह इस वीडियो की सत्यता की पुष्टि करे, दोषियों की पहचान करे और उनके खिलाफ उचित कार्रवाई करे। अगर वर्दी में मौजूद पुलिसकर्मी के साथ भीड़ इस तरह का बर्ताव कर सकती है, तो यह सिर्फ कानून का नहीं, पूरे सिस्टम का अपमान है।लोकतंत्र में किसी को भी नाम, मज़हब या पहचान के आधार पर टारगेट करना न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि सभ्य समाज के मुंह पर कालिख है। अब सिर्फ सवाल नहीं उठने चाहिए, एक ठोस और पारदर्शी जवाब भी आना चाहिए ताकि कानून की ड्यूटी निभा रहे हर शख्स को यक़ीन हो सके कि वो अकेला नहीं।