Wednesday, May 7, 2025
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रामनगर में ‘बत्ती गुल’ आंदोलन की गूंज: बुधवार रात 9 बजे से 9:15 तक मुस्लिम समाज ने अंधेरे से जताया वक्फ बिल का विरोध

रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान

रामनगर। बुधवार, 30 अप्रैल की रात कुछ अलग थी। आम दिनों की तरह शहर की गलियों में रौशनी नहीं, बल्कि एक सन्नाटा पसरा था। ठीक रात 9 बजे, शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों में बत्तियां एकाएक बुझा दी गईं। कोई हंगामा नहीं, कोई नारेबाज़ी नहीं—सिर्फ गहरा अंधेरा। और यह अंधेरा था एक सधी हुई आवाज़ का, जो कह रही थी: हम चुप हैं, पर असहमत हैं। यह विरोध था वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ, जिसकी मुखालफत करते हुए AIMIM प्रमुख और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने देशभर के मुसलमानों से अपील की थी कि रात 9:00 बजे से 9:15 बजे तक अपने-अपने घरों की लाइटें बंद करके विरोध दर्ज कराएं। ओवैसी का कहना है कि नया वक्फ बिल समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने का रास्ता खोलता है, जो एकतरफा और अन्यायपूर्ण है। रामनगर के मुस्लिम समाज ने इस अपील को गंभीरता से लिया। घड़ी की सुइयां जैसे ही 9:00 पर पहुंचीं, शहर के कई मोहल्लों में एक साथ घरों की लाइटें बुझा दी गईं। पूरा वातावरण शांत, लेकिन भावपूर्ण था। किसी ने कोई हंगामा नहीं किया, कोई प्रदर्शन नहीं किया—बस खामोश विरोध दर्ज हुआ, जो शब्दों से कहीं ज्यादा असरदार था। 9 बजकर 15 मिनट होते ही जैसे तय समय पूरा हुआ, वैसे ही घरों की रौशनी फिर से लौट आई। यह 15 मिनट का अंधेरा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया—क्या सचमुच यह बिल समुदाय के हितों के खिलाफ है? क्या सरकार इस शांतिपूर्ण विरोध को गंभीरता से लेगी? प्रशासन की ओर से इस पूरे विरोध को लेकर कोई हस्तक्षेप नहीं हुआ, न ही कहीं से किसी तरह की असामाजिक गतिविधि की सूचना मिली। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह विरोध का एक परिपक्व तरीका था, जिसमें न कोई कानून टूटा, न कोई व्यवस्था बिगड़ी, लेकिन संदेश बिल्कुल साफ था। रामनगर में यह पहला मौका था जब किसी राष्ट्रीय अपील के तहत सामूहिक रूप से इतने शांतिपूर्ण ढंग से विरोध दर्ज कराया गया हो। एक स्थानीय निवासी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम किसी टकराव के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन जब बात हमारी धार्मिक और सामाजिक पहचान से जुड़ी हो, तो विरोध ज़रूरी हो जाता है। और यह विरोध वैसा ही था—मर्यादित, शांतिपूर्ण और सशक्त।” इस विरोध ने साबित कर दिया कि अब आवाज़ उठाने के तरीके बदल रहे हैं। खामोशी भी कभी-कभी सबसे बुलंद नारा बन जाती है।

Rafi Khan
Rafi Khan
Editor-in-chief
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