जहां एक ओर आधुनिक दुनिया योग को नई खोज मान रही है, वहीं मुसलमान सदियों से अपने दैनिक इबादत के जरिये न सिर्फ अल्लाह की इबादत कर रहे हैं, बल्कि अनजाने में शरीर और मन को स्वस्थ बनाए रखने वाले योगासन और मुद्राओं का अभ्यास भी कर रहे हैं।
रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
वरिष्ठ अधिवक्ता और जागरूकता पुस्तकों के चर्चित लेखक नदीम उद्दीन ने अपनी नई किताब “सेहत व खुशहाली के लिए नमाज़, रोज़ा और ज़कात” में इस पहलू को बेहद दिलचस्प अंदाज़ में उजागर किया है।
नदीम का दावा है कि मुसलमानों की पाँच वक्त की नमाज़, जिसमें हर मुसलमान दिन में औसतन 23 बार वज्रासन करता है, असल में एक प्राचीन योग पद्धति से कम नहीं। रमज़ान में तरावीह की नमाज़ इस संख्या को और भी बढ़ा देती है। सजदा, रूकू, बैठने और खड़े होने की स्थितियां कई प्रसिद्ध योगासनों से मेल खाती हैं – जैसे भू नमन, हस्तपादासन, दक्षासन और सूर्य नमस्कार की मुद्राएं।
इतना ही नहीं, नमाज़ के बाद पढ़ी जाने वाली तस्बीह में उंगलियों और अंगूठे की मुद्रा से बनने वाली ध्यान, पृथ्वी, वायु और आकाश मुद्राएं भी पूरी तरह योग विज्ञान से जुड़ी हैं।
नदीम उद्दीन ने अपनी किताब के 2025 संस्करण में दो नए अध्याय जोड़कर बताया कि किस तरह नमाज़ के हर अमल में छिपा है सेहत का खजाना। “योगासन और नमाज़” नामक अध्याय में बताया गया है कि वज्रासन पाचन में मदद करता है, घुटनों और टांगों के दर्द में राहत देता है, और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। वहीं “तस्बीह और योग मुद्राएं” अध्याय में मानसिक तनाव, हृदय रोग, त्वचा रोग, गठिया और लकवे जैसी बीमारियों में लाभकारी मुद्राओं की चर्चा की गई है।
उनका मानना है कि योग किसी एक धर्म की बपौती नहीं, बल्कि इंसान की भलाई का विज्ञान है और इसकी मिसाल मुसलमानों की नमाज़ में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।