मानवता को जिंदा रखने वाली एक सच्ची कहानी
रामनगर। जब सिस्टम आँखें मूंद लेता है तब इंसानियत अपने पंख फैलाती है। कुछ ऐसा ही हुआ रामनगर में जहाँ एक घायल बेसहारा व्यक्ति को स्थानीय प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार कथित तौर पर रेलवे पुलिस ने सड़क किनारे छोड़ दिया। लेकिन जहां लापरवाही ने मुंह मोड़ा, वहीं ‘नेकी की दीवार’ संस्था के अध्यक्ष तारा घिल्डियाल ने मिसाल पेश कर दी।
रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
घायल व्यक्ति की पहचान शेरू पुत्र शेख इब्राहिम (उम्र 47 वर्ष) के रूप में हुई है, जो अजमेर शरीफ के मूल निवासी हैं। बताया गया कि उनका बचपन एक अनाथाश्रम में गुज़रा। वहीं से उन्होंने मोटर मैकेनिक का काम सीखा, वर्षों तक मेहनत की, लेकिन कुछ समय पहले एक इमारत से फिसलकर गिरने के कारण उनकी कुल्हे की हड्डी टूट गई।
बेघर और असहाय हालत में शेरू अजमेर में भीख माँगने लगे। किसी तरह ट्रेन से रामनगर पहुँचे लेकिन स्थानीय लोगों का दावा है कि उनकी बिगड़ती हालत के बावजूद उन्हें मंडी समिति गेट के पास छोड़ दिया गया। इसी दौरान तारा घिल्डियाल को जैसे ही जानकारी मिली उन्होंने बिना देर किए 108 एम्बुलेंस मंगवाई और स्वयं शेरू को लेकर रामनगर सिविल अस्पताल पहुँचे। स्थिति गंभीर होने पर उन्हें तुरंत सुशीला तिवारी हॉस्पिटल हल्द्वानी रेफर किया गया। घिल्डियाल स्वयं उन्हें अपनी देखरेख में हल्द्वानी लेकर गए। तारा घिल्डियाल ने कहा हमें समाज के सबसे कमजोर व्यक्ति के लिए खड़ा होना होगा। अगर हम चुप रहेंगे, तो मानवता का मतलब ही खो जाएगा। अब सवाल यह है क्या किसी घायल को इस हाल में छोड़ देना मानवीय संवेदनाओं की अनदेखी नहीं है? और क्या हमारी सामाजिक ज़िम्मेदारी सिर्फ बातें करने या दान देने तक सीमित रहनी चाहिए? शुक्र है कि तारा घिल्डियाल जैसे लोग अब भी हमारे समाज में हैं, जो चुपचाप वो कर जाते हैं, जो बहुतों के लिए सिर्फ भाषणों का हिस्सा होता है।