रिपोर्टर मोहम्मद कैफ खान
रामनगर। नगर निकाय चुनाव का माहौल दिन-ब-दिन गर्माता जा रहा है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, और अब एक पर्ची ने सियासी हलचल को और तेज कर दिया है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, खासकर फेसबुक पर वायरल हो रही इस पर्ची ने जनता के बीच नई चर्चाओं को जन्म दिया है। सवाल यह है कि यह पर्ची कितनी सच्ची है और कितनी झूठी? वायरल पर्ची के संदर्भ में विभिन्न दावे किए जा रहे हैं। कुछ लोग इसे राजनीतिक षड्यंत्र मान रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। हालांकि, अभी तक इस पर्ची की सत्यता की कोई पुष्टि नहीं हुई है। क्या यह पर्ची किसी बड़े राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा है? क्या इसका उद्देश्य जनता को भ्रमित करना है? या फिर यह चुनावी लाभ उठाने की रणनीति है रामनगर के निकाय चुनाव में कांग्रेस के दो खेमों के बीच जारी आपसी खींचतान ने जनता को असमंजस में डाल दिया है। क्या इस अंतर्कलह का फायदा किसी तीसरे पक्ष को मिलेगा? क्या कांग्रेस के दो गुटों के बीच की यह लड़ाई वोटों को बांटकर किसी और को सत्ता में पहुंचा देगी? चुनाव में जिस तरह की बयानबाजी, आरोप-प्रत्यारोप और सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाएं सामने आ रही हैं, वह यह सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि क्या रामनगर किसी बड़ी साजिश का शिकार हो रहा है? क्या यह साजिश बाहरी ताकतों की है? क्या जनता के ध्यान को असली मुद्दों से भटकाने का प्रयास किया जा रहा है? इस स्थिति में सबसे बड़ी जिम्मेदारी जनता की बनती है। जनता को समझदारी से यह तय करना होगा कि वह अफवाहों और वायरल पोस्ट से प्रभावित न हो। उनके वोट का फैसला किसी भी झूठे प्रचार या भावनात्मक अपील से नहीं, बल्कि क्षेत्र के विकास और जनहित के आधार पर होना चाहिए। रामनगर निकाय चुनाव इस बार न केवल नेताओं और पार्टियों के लिए चुनौती है, बल्कि जनता के विवेक और समझदारी की भी परीक्षा है। चुनावी माहौल में वायरल पर्ची जैसी चीजें वोटर्स को भटकाने के लिए हो सकती हैं, लेकिन जनता को अपने निर्णय में सचेत और जिम्मेदार बने रहना होगा।