फैशन और सामाजिक जरूरतों को पूरा करने की होड में जिस तरह युवा व कमसिन बच्चियां समाज में रहने वाले गिद्ध की नजरें जमाए कामुक दरिंदो की भेट चढ़ रही है, उसने आपराधिक ग्राफ को बढ़ाया हो या नहीं लेकिन सामाजिक ताने बाने के संतुलन को जरूर बिगाड़ के रख दिया है…पढ़िए आज के सामाजिक परिवेश पर रेखांकित हमारी यह खास रिपोर्ट…
रफी खान/ संपादक
स्याही सूख नहीं पाती अखबारों की, नई खबर आ जाती बलात्कारों की ! जहां हम बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ के नारे को बुलंद कर महिला प्रधान देश बनाने की बात कर रहें है तो वही दूसरी और टीवी पर इस पे भी बहस होती देखी जा सकती है। देश आजाद हुआ है पर देश की बेटियां नहीं? देश में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार का आंकड़ा दिन प्रतिदिन लगातार बढ़ता जा रहा है। गौरतलब रहे देश में हर साल करीब चार लाख से ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध दर्ज किए जाते हैं, इन अपराधों में रेप, छेड़छाड़, एसिड अटैक, किडनैपिंग और दहेज जैसे अपराध शामिल हैं जब आज से लगभग ढाई वर्ष पूर्व 2022 के आंकड़ों के मुताबिक देश में 4,45,256 मामले महिला अपराध के दर्ज किए गए यानी हर घंटे 51 मामले दर्ज तो आज स्थिति क्या होगी आप गढ़ना कर सकते हैं।
बढ़ते महिला अपराध पर सारा का सारा दोष सिस्टम पर मंढ देना जायज नहीं इसके लिए कही न कही पापा की परी और परियों के पापा भी आज बड़े जिम्मेदार के तौर पर देखें जा रहे हैं। गार्जन ये क्यों नहीं देख पा रहे बच्चों पे महंगे मोबाइल,महंगे परिधान गिफ्ट्स आदि कहां से मिले,दिन हो रात घर में बच्चे एकांतवास क्यों तलाश रहें है। यह सब देखना नोटिस करना सिस्टम की नहीं हमारी और आपकी जिम्मेदारी है।
में पूरी तरह से सिस्टम की वकालत नहीं कर रहा लेकिन शुरूआती जिम्मेदारी सिस्टम में रह रहे लोगों की यानी हम सबकी बनती है, हालांकि सिस्टम को चाहिए के वह देश में बेतहाशा बढ़ते महिला अपराध पर अंकुश लगाने को कारगर ठोस प्रणाली अपनाए और देश में स्वच्छ वातावरण की स्थापना करे लेकिन महिला अपराध के आंकड़े बताते हैं ऐसा हो नहीं पा रहा। आज पूरे भारत में शायद ही कोई ऐसा शहर बचा हो जहां चंद पेसो की चाह में युवक युवतियों को एकांतवास मुहैय्या न कराया जा रहा हो। आखिर क्यों? ये समझने की जरूरत है।
अगर हम अपने काशीपुर की ही बात करें तो हमारे शहर में दर्जनों ऐसे स्पॉट हैं जहां 300,500,1000 रुपए में घंटे दो चार घंटे के हिसाब से युवक युवतियों को एकांतवास दिया जाता है। हालांकि ऐसे स्थानों पर ह्यूमन राइट्स सेल समय समय पर रेड तो करती है परन्तु स्थिति आज भी जस की तस है। युवतियों को बहला फुसला कर इन स्पॉट्स पर जिस तरह से उनकी मासूमियत को कुचला जा रहा है ये देश की सरकारों और सरकार के करिंदो से ढका छुपा नहीं है।
में फिर कहूंगा सिस्टम जिम्मेदार है पर सारा दोष सिस्टम पर मंढ देने मात्र से ही, हम और आप बच नहीं सकते। अपने घर में समाज में और देश-प्रदेश में स्वच्छ वातावरण बनाए रखने की जिम्मेदारी जितनी सिस्टम की है उतनी हम सबकी भी है। तो फिर क्यों तमाशाई बने बैठे हो इसलिए आओ हाथ बढ़ाओ कुछ हम बदले कुछ सिस्टम को बदले और अपने महान भारत में स्वच्छ वातावरण लाए।